एक स्वस्थ्य लोकतंत्र के लिए एक मज़बूत सरकार के सामने एक मजबूत विपक्ष का होना ज़रूरी समझा जाता है। विपक्ष सरकार के कार्यों और नीतियों पर सवाल उठाता है और उसे निरंकुश होने से रोकता है। संसद में अगर विपक्ष कमज़ोर होता है तो सत्ता पक्ष मनमाने तरीके से कानून बना सकता है। सदन में किसी मुद्दे पर अच्छी बहस मज़बूत विपक्ष के बिना संभव नहीं है।
सत्ता पक्ष और विपक्ष को ‘लोकतंत्र के दो पहिये’ बताते हुए वरिष्ठ भाजपा नेता व कैबिनेट मंत्री नितिन गडकरी ने ने भी लोकतंत्र को सफल बनाने के लिए एक मजबूत विपक्ष का होना जरूरी बताया। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र की सफलता के लिए सत्ताधारी पार्टी पर मजबूत विपक्ष का नियंत्रण जरूरी है और इसके लिए कांग्रेस पार्टी विपक्ष के रूप में मजबूत बननी चाहिए और विचार के आधार पर उनको जिम्मेदार विपक्ष का काम करना चाहिए। महाराष्ट्र विधानसभा में विपक्ष के नेता के रूप में अपने वर्षों को याद करते हुए गडकरी ने कहा कि एक समय था जब उन्होंने सदन को बाधित करने का नेतृत्व किया था।
उन दिनों एक बार मैं अटलजी से मिला था और उन्होंने मुझसे कहा था कि लोकतंत्र में काम करने का यह कोई तरीका नहीं है और लोगों तक अपना संदेश पहुंचाना महत्वपूर्ण है। जवाहर लाल नेहरू हमेशा अटल बिहारी वाजपेयी जी का सम्मान करते थे और कहते थे कि विपक्ष भी जरूरी है। वाजपेयी और नेहरू हिंदुस्तान के लोकतंत्र के दो आदर्श नेता थे और दोनों अपने लोकतांत्रिक मर्यादा का पालन करते थे। सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों को आत्मनिरीक्षण करना चाहिए क्योंकि आज जो विपक्ष है वो कल का सत्तारूढ़ पार्टी हो सकता है और जो आज सत्तारुढ़ है वह कल विपक्ष में हो सकता है। लोकतंत्र में ऐसा होता रहता है। आज देश में भारतीय जनता पार्टी और नरेंद्र मोदी का कोई विकल्प नजर नहीं आ रहा है। नरेंद्र मोदी द्वारा विश्व में भारत की एक अलग मजबूत पहचान बनाने व आम जनता की
कई समस्याओं का समाधान करने पर प्रसन्न हुआ जा सकता है परन्तु एक जागरूक नागरिक के तौर पर हमारा यह कहना एकदम सही है कि देश में मजबूत विपक्ष एक सफल और मजबूत लोकतंत्र के लिए आवश्यक है। भारतीय लोकतंत्र आज एक ऐसे मोड़ पर आकर खड़ा हो गया है जिसके बाद दुनिया के सबसे बड़े देश का लोकतंत्र मजबूत भी हो सकता है और कमजोर भी। भारतीय जनता पार्टी ने कांग्रेस मुक्त और हम जोड़ रहे हैं कि विपक्ष मुक्त भारत बनाने का नारा दिया है।
भाजपा ने कुछ तो अपनी कार्य कुशलता व कूटनीति से कांग्रेस के अस्तित्व को समाप्त कर दिया और जो थोड़ी बहुत कसर रह गई वह उसने कांग्रेस के चापलूस, सत्ता लोपी नेताओं को साम दाम दंड भेद की नीति अपनाकर अपनी पार्टी में शामिल करके कर ली है लेकिन ऐसा करके भाजपा ने अपनी “विद ए डिफरेंस” पार्टी की छवि को तो बट्टा लगाया ही है साथ ही साथ अपने निष्ठावान व समर्पित कार्यकर्ताओं के साथ भी छलावा किया है। अच्छा होता भाजपा अगर कांग्रेस मुक्त भारत की जगह केवल भ्रष्टाचार मुक्त और गरीबी मुक्त भारत बनाने का नारा लगाती और उस पर अमल भी करती। भाजपा राज में भी देश में भ्रष्टाचार व गरीबी कांग्रेस राज्य से ज्यादा है।
भारत जैसे बड़े लोकतंत्र में कांग्रेस एक अखिल भारतीय पार्टी है। इसके अलावा पूरे देश के सभी क्षेत्रों में अपनी पैठ रखने वाली कोई अन्य पार्टी नहीं है। यह लोकतंत्र के लिए दुर्भाग्य की बात है कि 130 साल पुरानी कांग्रेस पार्टी आज अपने अस्तित्व को खोती जा रही है और उसके जनाधार में भी काफी कमी आई है। किसी भी पार्टी को आगे बढ़ाने,उसका अस्तित्व कायम रखने के लिए जरूरी है कि वह सभी दिन क्रियाशील रहे, जनता के बीच रहे, हर मौसम में जागरूक रहकर अपने संगठन को भी मजबूत करे और आम जनता के बीच में भी जाकर जनता से सीधा संपर्क कायम करे। राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ऐसा प्रयास तो कर रहे हैं लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिल रही है कांग्रेस में चरम सीमा पर कायम गुटबाजी कांग्रेस को आगे बढ़ने ही नहीं दे रही है।
इसका फायदा भाजपा भरपूर उठा रही है और उसके असंतुष्ट नेताओं को भाजपा में शामिल करके उन्हें महत्वपूर्ण पद प्रदान कर रही है रही हैं। कितने शर्म की बात है कि इन नेताओं ने कांग्रेस राज में कई महत्वपूर्ण पदों पर रह कर खूब मान सम्मान पाया,खूब मलाई खाई लेकिन जब कांग्रेस के बुरे दिन आए,तो जिस तरह डुबते जहाज में से सब अपनी जान बचाने के लिए भागते हैं उसी प्रकार ये चापलूस व महत्वकांक्षी नेता कांग्रेस के कमजोर होने पर तुरंत भाजपा की गोद में जा बैठे और वे यहां पर भी खूब सत्ता सुख भोग रहे हैं। प्रभावी विपक्ष के तौर पर कांग्रेस की नाकामी व विपक्ष की आवाज न बनने के कारण ही पिछले एक दशक में भाजपा एक बड़े राष्ट्रीय दल व विश्व की सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरी है।
कांग्रेस को भाजपा का मुकाबला करने के लिए जमीनी स्तर पर अपने संगठन को मजबूत करना होगा। पार्टी इस वास्तविकता को नहीं समझी है कि वक्त बदल चुका है। केवल संसद का बहिष्कार करने और गलियों में नारे लगाने से कुछ नहीं होगा। उन्हें जनता से सम्पर्क करना होगा तथा उन्हें महत्वपूर्ण मुद्दों पर शिक्षित करना होगा। क्षेत्रीय पार्टियों में भी काफी कमियां हैं। अधिकांश क्षेत्रीय पार्टियां,राजा का बेटा ही राजा बनेगा की परंपरा पर चल रही हैं। अब उनके परिवार में भी काफी बिखराव व टूट-फूट हो गई है या करवा दी गई है। जिसकी टूट फूट का फायदा सत्तारूढ़ भाजपा मजे से उठा रही है।
मजबूत लोकतंत्र के लिए जहां एक स्थायी सरकार की जरूरत होती है, वहीं इसके लिए एक विश्वसनीय और मजबूत विपक्ष भी जरूरी होता है। विपक्ष का मुख्य काम वर्तमान सरकार से सवाल पूछना और उसे जनता के प्रति उत्तरदायी बनाना होता है। यह विपक्ष ही होता है जो सरकार की शक्ति पर लगाम लगाने का काम करता है।
सबसे बड़ी बात यह है कि लगातार हार के बाद भी विपक्ष बिखरा हुआ है। केंद्र में भाजपा की हैट्रिक ना बने इसको रोकने के लिए कांग्रेस सहित कई विपक्षी दलों ने मिलकर इंडिया नाम से एक एलाइंस बनाया है लेकिन दुर्भाग्य देखिए कि इसके सूत्रधार नीतीश कुमार खुद ही भाजपा की गोद में बैठ गए हैं यह एलाइंस मजबूत व एकजुट होने की जगह बिखरता ही जा रहा है। विपक्ष धारदार, असरदार और ईमानदार हो तो सरकार उसके डर से कांपती है,देश का भला होता है,सरकारी नेताओं का अंहकार, उनकी निरंकुश और मनमानी नियंत्रित रहती है।
राजनीतिक विपक्ष की भूमिका सरकार के बराबर ही महत्वपूर्ण होती है। अब समय आ गया है कि विपक्ष मजबूती से खड़ा हो क्योंकि भारतीय लोकतंत्र वास्तविक व मजबूत विपक्ष के लिए छटपटा रहा है।
यह सत्य है कि अगर विपक्ष की जो हालत इस समय है वह ऐसी ही रही, कोई एक दमदार, सभी को स्वीकार्य और जनप्रिय नेता आगे नहीं आया तो भाजपा को केंद्र में तीसरी बार आने से कोई नहीं रोक सकता।
( लेखक कैलाश शर्मा स्वतंत्र स्तंभकार एवं विचारक हैं )