उत्तर प्रदेश के किसान नेता के रूप में चौधरी चरण सिंह का नाम लिया जाता है लेकिन चरण सिंह वस्तुतः एक राजनेता थे। उनको किसान नेता सिर्फ इस आधार पर कहा जा सकता है कि उन्होंने किसानों की भलाई के लिए सोचा और नीतियां बनाने में सक्रिय भूमिका निभाई। लेकिन चरण सिंह ने किसानों का कोई आन्दोलन नहीं चलाया। वैसे तो भारत में किसानों के आन्दोलन का इतिहास आज़ादी से पहले का रहा है। ब्रिटिश हुकूमत के दौरान देश के कई प्रांतों में किसान का संघर्ष बिचौलियों, ज़मींदारों और साहूकारों से जारी रहा था। अलग-अलग स्थानों पर किसानों के विरोध के स्वर उठते रहते थे।
1800 के दशक में किसानों के कई विद्रोह और संघर्ष हुए, जो इतिहास के पन्नों में दर्ज हैं। इनमें ब्रिटिश हुकूमत की ओर से किसानों पर लगाए गए लगान के विरुद्ध प्रदर्शन भी शामिल थे। 1900 की शुरुआत में ही भारत में किसान पहले से ज़्यादा संगठित होने लगे थे। आज़ादी के पहले यूपी में किसान आन्दोलन के साथ बाबा राम चंदर का नाम जुड़ा हुआ है। बाबा राम चंदर थे तो ग्वालियर, मध्यप्रदेश के लेकिन वह अयोध्या में एक साधू की तरह रहते थे। उन्होंने अवध क्षेत्र में किसानों का एक बड़ा संगठन खड़ा किया था। उन्होंने किसानों को एकजुट करने का बड़ा काम किया था। लेकिन बाद में उनका संघर्ष आज़ादी की लड़ाई में तब्दील हो गया था।
यूपी में अवध ने की अगुवाई
उत्तर प्रदेश में सबसे पहली बार वर्ष 1917 में अवध क्षेत्र में किसान गोल बंद हुए थे। इसी साल अवध में किसानों का पहला, सबसे बड़ा और प्रभावशाली आंदोलन हुआ था। होमरूल लीग के कार्यकर्ताओं के प्रयास तथा मदन मोहन मालवीय के मार्गदर्शन के परिणामस्वरूप फरवरी 1918 में उत्तर प्रदेश में किसान सभा का गठन किया गया। इसमें गौरी शंकर मिश्रा और इंद्र नारायण द्विवेदी जैसे नेता भी शामिल थे। वर्ष 1919 में इस संघर्ष ने ज़ोर पकड़ लिया। वर्ष 1920 के अक्तूबर महीने में प्रतापगढ़ में किसानों की एक विशाल रैली के दौरान अवध किसान सभा का गठन किया गया। इस संगठन को जवाहरलाल नेहरू ने अपना सहयोग प्रदान किया। उत्तर प्रदेश के हरदोई, बहराइच एवं सीतापुर जिलों में लगान में वृद्धि एवं उपज के रूप में लगान वसूली को लेकर यह आंदोलन चलाया गया।