अभी पिछले दिनों में जब एक विधायक ने हरियाणा विधानसभा में भी विचार रखा कि फरीदाबाद में जल की समस्या है। इसके लिए उन्होंने सुझाव दिया कि अरावली में बहुत सारे ऐसे गड्ढे हैं जिनमें बहुत पानी भरा हुआ है। उस पानी को हम लोगों तक पहुंचा दे तो इनसे फरीदाबाद के लोगों के लिए कुछ सालों के लिए जल समस्या का समाधान किया जा सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि रैनीवेल योजना से यमुना से जो जल मिलता है वह स्वास्थ्यवर्धक भी नहीं है सबसे पहले तो इन प्रतिनिधि का धन्यवाद कि किक इन्होंने यह बात तो मानी केजरीवाल से जो जल फरीदाबाद को मिल रहा है, कल्याणकारी नहीं है तो इस बात पर शायद उम्मीद रखनी चाहिए थी कि वहां यह बात रखी जाएगी यमुना को कैसे स्वच्छ रखें ताकि शुद्ध पानी हमें मिल सकी दूसरा फरीदाबाद में जल की समस्या है, कारण क्या है, उनको जानना उनके निवारण के लिए चर्चा होती तो ज्यादा बेहतर होता क्योंकि जब मूल रूप से कोई समस्या होती है तो हमें उसका उपचार करना चाहिए पहले फरीदाबाद का भूजल खत्म खराब किया फिर यमुना की बारी आई और जब वह भी किसी लायक नहीं छोड़ रहा है उसका पानी भविष्य में और ज्यादा घातक होंगे।
सबसे पहले मनुष्य को अपने जीवन को सहज रूप से चलाना है तो उसके बहते हुए जल का प्रयोग करना चाहिए जैसे नदियों का जब लोग नदियों से दूरी पर रहते हैं तो उनके ऊपर सामान्य जीवन घर चलाने के लिए वर्षा जल एकत्र करना होता है जैसे हम अपने तालाबों में करते थे पोखर में करते थे उससे अपना जीवन चलाना चाहिए और यदि परिस्थितियां हो जब बारिश भी ना होती हो तब भोजन इकट्ठा करना मुश्किल हो जाता है तो उन परिस्थितियों में जब पहले से पानी उपलब्ध से जीवन चलाना होता है। यह विपरीत परिस्थितियों की स्थितियां है लेकिन लेकिन हम लोग देखते हैं कि फरीदाबाद के लोग तो विपरीत परिस्थितियों को जान ही नहीं रहे हैं मैं तो सामान्य स्थितियों में भी भूजल का प्रयोग कर रहे हैं उसके बाद जब मरणासन्न स्थिति होती है।
जब पैसे लगेंगे अब चलेगा ही कहीं से जल उपलब्ध न हो उन लोगों को पाताल के जल का प्रयोग करना चाहिए जिससे समर्सिबल कहते हैं पाताल तोड़ जल हम लोग इसे समर्सिबल कहते हैं। हम लोगों ने अनेकों लगा लिए हैं सामान्य स्थितियों में मनुष्य के निकृष्ट व्यवहार की जो अति हो सकती है वहां तक हम पहुंच गए हैं।जब मैं राशन स्थिति के लिए हम पाताल की जल के प्रयोग की बात रखते हैं तो उसमें कहीं कहीं एक जगह भी ऐसा नहीं आया कि हम पहाड़ों को खो दे उनके पानी को निकाल कर अपने जीवन को चलाएं क्योंकि यह सब कुछ ना केवल मनुष्य का बल्कि पूरे प्रकृति के जीवन चक्र के लिए घातक बनता है अभी तक पूरी दुनिया में पहाड़ों को खुद कर उसका पानी निकालने का सुझाव उपलब्ध नहीं है जबकि सबको पता है कि जल उपलब्ध है इसलिए यह भी हमें समझ लेना चाहिए कि जो अरावली है उसमें जो जल है सीमित मात्रा में है वह सीमित नहीं है दूसरी बात यह भी हमें समझ लेना चाहिए कि आराधी में जल है वह एक स्थिर अवस्था में है वह गतिमान अवस्था में नहीं है कि जैसे हिमालय में दिखाई पड़ता है तो इसकी सीमित मात्रा है।हमें इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि अरावली में जो अवैध खनन हुआ है वह सब पत्रों को लील गया है और तथाकथित रसूख वाले लोग उन्होंने यहां से अवैध रूप से जल को चोरी कर रहे हैं। अरावली पर जो हम लोगों ने अमानवीय अत्याचार किए हैं उसे कलंक के तौर पर बड़े-बड़े गड्ढे उसके दिए हैं वह अभी भी इसके चेहरे पर दिखाई पड़ते हैं जरूरत है
हम आज इन कल अंको को भरे हमें चाहिए कि हम इन गड्ढों को भर दे परंतु अब एक और नई बात आई है बजाएं इन गड्ढों को भरने के उन को और गहरा को दें तथा उनमें से और पानी निकाले तो इस तरह के सुझाव हमारे प्रतिनिधि देते हैं तो यह सही मायने में जल विज्ञान की उनकी थोड़ी सी नासमझी ही है शायद उनके ऊपर यह दवा भी है जब अपने क्षेत्र के लोगों को जल उपलब्ध नहीं करवा पाएंगे तो वह क्या जवाब देंगे सबसे आसान तरीका तो यही है कि जहां जल दिखाई दे वहीं से ले लो लेकिन हम यह भूल जाते हैं कि परिस्थितियों में काम नहीं करता तो हम गलत कदम उठा लेते हैं यदि हम लोगों ने ऐसा कदम उठाए हैं जहां से पानी लाने की बात हो रही है भविष्य के लिए और ज्यादा घातक हो जाएगा क्योंकि हमें यह समझना है कि इस पानी से कितने दिन काम चलाएंगे दो साल 4 साल से ज्यादा तो काम नहीं चला सकती क्योंकि जिस तरह से अपने जीवन को चलाने के लिए पानी के प्रति हमारी बुरी आदतें हैं।
उसे यह पानी का दो 4 साल से ज्यादा नहीं चल सकता इससे 2 साल हमारे लालच को पूरा किया जा सकता है इससे ज्यादा भी चला जाए तो कहीं बड़ी बात है आप लोग देखेंगे जो हम लोगों ने जल का खनन किया हमारा भोजन हो गया हमारी अरावली के जल को ऐसा करेंगे तो पूरी अरावली सूख जाएगी अभी सूखे की तो हम लोगों को समझ लेना चाहिए कि जो छोटे-छोटे खाना किए हैं उनकी वजह से हमारी बर्तन सूख गई यह जब मात्रा में बढ़ेगा तो पूरा शहर इस पर निर्भर हो जाएगा तो यह वहां के पूरे जीवन चक्र को लील जाएगा जीवन चक्र जब खत्म होगा तो पहले वनस्पतियां खत्म होगी फिर वहां की जीव जंतु खत्म होने लगेंगे इधर-उधर दौड़ एंगे उसके बाद पक्षी और उसके आसपास के मनुष्य है वह सभी विस्थापित हो जाएंगे या खत्म हो जाएंगे मनुष्य विस्थापित होना ज्यादा पसंद करेगा इस प्रकार से अरावली की समाप्ति हो जाएगी तो हम लोग इस बात की तैयारी करें 5 साल 7 साल के अंदर अरावली खत्म कर दी जाए तो उसके बाद आप देखेंगे कि फरीदाबाद है गुरुग्राम है दिल्ली है। यह अभी तक तो पेयजल की समस्या झेल रहे हैं। थोड़े समय के बाद यह बायो की समस्या जी लेंगे क्योंकि जब जंगल नहीं बचेंगे तो लोगों को शुद्ध वायु जो अब तक मिल रही है। खराबी की वजह से वह भी उपलब्ध नहीं हो पाएगी और ऐसे ही हालात हो जाएंगे जैसे आज भोजन खत्म होने के कारण चेन्नई के हालात है वैसे ही फरीदाबाद के हालात अगले दो-तीन साल में होना तय है क्योंकि हम लोग अपने व्यवहार में कोई परिवर्तन नहीं करना चाहते इनके अलावा यदि आप पहाड चेन्नई के हालात है वैसे ही फरीदाबाद के हालात अगले दो-तीन साल में होना तय है क्योंकि हम लोग अपने व्यवहार में कोई परिवर्तन नहीं करना चाहते इनके अलावा यदि आप पहाड़ों को देखना चाहते हैं तो शिमला की हालत देख सकते हैं दुर्दशा में है क्योंकि वहां पहाड़ों में रहने के बावजूद उनके पहाड़ को निकाला वह जल उपलब्ध नहीं है मनुष्य स्वार्थी हो गया है जब हमारे स्वार्थ हावी हो जाते हैं लालच हो जाते हैं तो अंत के नजदीक लेकर आ जाते हैं कहते हैं कि बुराई का घड़ा कभी ना कभी भरता है इस वक्त अपने व्यवहार के कारण अपने अंत की ओर बढ़ रहा है हम लोग अपने व्यवहार में परिवर्तन नहीं करना चाह रहे।इस तरह से एक गैर जिम्मेवार नागरिक के तौर पर हम लोग प्रकृति का हर प्रकार से शोषण करने में लगे हैं जल को जो सम्मान मिलना चाहिए हम लोगों ने कभी नहीं दिया उसको तो हम लोगों ने फालतू की चीज समझकर दुरुपयोग किया जल की प्रति वस्तु न समझना सामान के भाव की आवश्यकता है मानवीय व्यवहार के दृष्टिकोण मालिक से सेवक व सहभागी का हो।
हम लोगों को चाहिए ताकि फरीदाबाद के जल स्रोतों को ठीक करें गांव में तालाब है पोखर है झील है लेकिन हम लोगों ने उनके उत्थान के लिए नहीं सोचा जब भी सोचना चाहिए ताकि हम उनको कैसे ठीक करें जल व्यवस्था को सुधार सके मनुष्य को यह भी जान लेना चाहिए कि वो प्रकृति का मालिक नहीं है उसको मालिक जैसा नहीं प्रकृति की कोई भी तत्व जल व वायु आकाश अग्नि क्यों ना हो इन सब के साथ सम्मान के साथ पेश आना चाहिए और अपने गुलाम जैसा व्यवहार नहीं करना चाहिए हमको प्रकृति के अनुसार जो व्यक्ति प्रकृति के अनुसार चलेगा हमेशा सुख में रहेगा आनंद में रहेगा और जब प्रकृति के विपरीत चलेगा जिसे दिल्ली फरीदाबाद इन दिनों देख रहा है वह चाहे भाइयों को लेकर हो चाहे जल को लेकर हो वह मनसे को लेकर हो चाहे मानसिक तनाव को लेकर सभी तनाव प्रकृति के विपरीत दिशा में स्थिति को बताते हैं अरावली सेजल को लाना यह बहुत बड़ी बेमानी होगी और दुष्ट परिणाम देखने को मिलेंगे हम प्रयास करेगी उसको पुनर्जीवन कैसे दिया जा सके अली का शोषण करें ज्यादा से ज्यादा कर सके ताकि हम दैनिक जरूरतों को पूरा कर सकें इसके अनुसार प्रयोग कर सकते हैं अभी तो दो-तीन साल लगेंगे कर सकते हैं लेकिन अभी नहीं जागे तो भविष्य में और ज्यादा घातक होंगे बुरी आदतें अगर वक्त पर नहीं बदली जाए तो वही आदतें आपका वक्त बदल देती है।
Jagdeesh Chaudhry