यूजीसी (UGC) का कहना है कि छात्रों की डिमांड (Chhatron Ki Mang) और एडमिशन लेने वालों की संख्या के आधार पर कोई पाठ्यक्रम पढ़ाया जाए। एक्सपर्ट्स का कहना है कि ऐसा करने से कई संस्थानों में कुछ भाषा और सामाजिक विज्ञान कोर्स के बंद होने का खतरा बढ़ गया है। बहुत से कोर्स ऐसे होते हैं जिनमें विशिष्ट जानकारी दी जाती है और उनमें कम ही छात्र पढ़ने आते हैं।
यूनिवर्सिटीज में पढ़ाए जाएंगे केवल व्यावसायिक पाठ्यक्रम
एक शिक्षाविद का कहना है कि यूजीसी के निर्देश के अनुसार, विश्वविद्यालयों में ह्यूमेनिटीज़ और सामाजिक विज्ञान के पाठ्यक्रम धीरे-धीरे बंद हो जाएंगे। ये खतरा हो जाएगा कि ऊंची फीस लेकर सिर्फ व्यावसायिक पाठ्यक्रम (Professional Course) पढ़ाए जाएंगे। दरअसल, ज्यादातर व्यावसायिक पाठ्यक्रमों के लिए छात्रों की मांग (Students Ki Demand) अधिक रहती है क्योंकि ऐसे पाठ्यक्रम बेहतर रोजगार की संभावनाएं प्रदान करते हैं।
यूजीसी की सलाह ऐसे समय में आई है जब सार्वजनिक वित्त पोषित संस्थानों ने कई पारंपरिक पाठ्यक्रमों (Traditional Courses) को बंद करना शुरू कर दिया है। ख़ास कर कला और सामाजिक विज्ञान के पाठ्यक्रमों में ऐसा हो रहा है। बताया जाता है कि दिल्ली विश्वविद्यालय से संबद्ध पांच कॉलेजों – खालसा कॉलेज, लेडी श्रीराम कॉलेज, मिरांडा हाउस कॉलेज, हिंदू कॉलेज और अंबेडकर कॉलेज – ने हाल के वर्षों में अपने उर्दू विभाग (Urdu Department) बंद कर दिए हैं। राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग (National Commission for Minorities) ने इन कॉलेजों को उर्दू विभाग बंद करने के लिए नोटिस जारी किया है। बताया जाता है कि कुछ अन्य कॉलेजों में बंगाली और तमिल विभाग भी बंद हो गए हैं।
एक्सपर्ट्स का कहना है कि चूंकि सरकारी वित्त पोषित विश्वविद्यालय अक्सर वंचित वर्गों के छात्रों के लिए गुणवत्तापूर्ण उच्च शिक्षा की एकमात्र आशा का प्रतिनिधित्व करते हैं, इसलिए उनके कार्यक्रमों के किसी भी बंद होने से गरीबों को सबसे ज्यादा नुकसान होगा।
UGC ने पत्र में कही यह बात
यूजीसी के पत्र में कहा गया है कि – कुछ विभाग हैं जो केंद्रीय विश्वविद्यालयों द्वारा बिना ये पता किये शुरू किये गए थे कि उनकी कितनी डिमांड है। ऐसे पाठ्यक्रमों में रुचि रखने वाले छात्रों की संख्या का आकलन नहीं किया गया था। यूजीसी ने कहा है कि – यह अनुरोध किया जाता है कि आप छात्रों की मांग और किसी विशेष पाठ्यक्रम में भाग लेने वाले छात्रों की संख्या के आधार पर पाठ्यक्रमों का संचालन कर सकते हैं और स्वीकृत संख्या के भीतर सभी विभागों का युक्तिकरण कर सकते हैं।
नए निर्देश लागु होने से ह्यूमैनिटीज़ और सामाजिक विज्ञान के लिए, छात्र केवल ऑनलाइन पाठ्यक्रमों (Online Courses) में नामांकन कर पाएंगे। एक्सपर्ट्स का कहना है कि ऑनलाइन पाठ्यक्रमों में क्वालिटी की बात पर समझौता करना पड़ता है। एक्सपर्ट्स का ये भी कहना है कि किसी विषय के अकादमिक महत्व का मूल्यांकन बाजार वैल्यू से नहीं किया जा सकता है। समझा जाता है कि वित्तीय बोझ को कम करने के लिए ऐसा कदम उठाया जा रहा है। विश्वविद्यालयों को बाजार संचालित पाठ्यक्रमों की पेशकश करने के लिए प्रेरित कर रही है।