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Home » उ0 प्र0 विधान सभा चुनाव : भाजपा के लिए आसान होती सत्ता की राह –ज्ञानेन्द्र रावत
National Newsविचार

उ0 प्र0 विधान सभा चुनाव : भाजपा के लिए आसान होती सत्ता की राह –ज्ञानेन्द्र रावत

Deepak Sharma
Last updated: 18 February, 2022
By Deepak Sharma
1.7k Views
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15 Min Read
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उत्तर प्रदेश के इस बार के विधान सभा चुनाव में जहां भाजपा राज्य की सत्ता में दोबारा वापिसी कहें या उसे बरकरार रखने के लिए पुरजोर कोशिश कर रही है, वहीं राज्य का प्रमुख विपक्षी दल समाजवादी पार्टी पांच साल के वनवास के बाद पुनः सत्ता में वापसी के लिए एडी़ चोटी का जोर लगा रही है। हां बहुजन समाज पार्टी जहां अपने अस्तित्व की लडा़ई लड़ रही है, वहीं आजादी के बाद से दशकों तक राज्य की सत्ता पर काबिज रही कांग्रेस अपने जनाधार को पुनः स्थापित कर सत्ता में भागीदारी के लिए पुरजोर प्रयास कर रही है। इसे यदि यूं कहें कि राज्य में बीते दशकों में अपना जनाधार खो चुकी कांग्रेस पिछले वर्षों में जनता में अपनी पैठ बनाने की हरसंभव कोशिश कर सत्ता की दहलीज तक पहुंचने का प्रयास कर रही है तो कुछ गलत नहीं होगा। हां राष्ट्रीय लोकदल समाजवादी पार्टी से गठजोड़ कर राज्य में अपनी मौजूदगी दर्ज कराने की जुगत में जरूर है।

देखा जाये तो पिछले तीन विधान सभा चुनावों में प्रदेश की सत्ता बदलती रही है। 2007 में राज्य में बहुजन समाज पार्टी की सरकार बनी जबकि 2012 में समाजवादी पार्टी की सरकार रही और 2017 में प्रदेश की सत्ता पर लम्बे समय बाद भारतीय जनता पार्टी काबिज होने में कामयाब रही। हां इस सच्चाई से इंकार नहीं किया जा सकता कि बीते 15 सालों में कोई भी दल प्रदेश की सत्ता पर दोबारा काबिज नहीं हो पाया। और कांग्रेस की बात करें तो वह चौथे स्थान पर रहकर ही संतोष करती रही है। यह पहला मौका है जबकि भाजपा अपने पूरे दमखम के साथ प्रदेश की सत्ता पर दोबारा काबिज होने के प्रयास में है। मौजूदा हालात तो इसी की गवाही दे रहे हैं।

सबसे पहले राज्य की प्रमुख विपक्षी पार्टी समाजवादी पार्टी की बात करें जो सत्ता की प्रबल दावेदार है। दरअसल समाजवादी पार्टी ने 2012 में 30 फीसदी वोट के साथ 224 सीट लेकर प्रदेश की सत्ता हथियाई थी। लेकिन 5 साल के अंतराल में उसका वोट 8 फीसदी कम होकर 22 फीसदी रह गया और भाजपा ने 40 फीसदी वोट हासिल कर 312 सीट के साथ प्रदेश की सत्ता हासिल कर ली थी। यही नहीं 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा का वोट 9 फीसदी बढा़। इस विधान सभा चुनाव में भाजपा के लिए अपना 2019 के लोकसभा चुनाव में हासिल वोट प्रतिशत को बरकरार रखने की गंभीर चुनौती है। भाजपा की मानें तो इस चुनौती को मौजूदा समीकरण के मद्देनजर वह गंभीर नहीं मान रही है लेकिन हकीकत कुछ और ही बयां कर रही है। प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, रक्षामंत्री, भाजपा अध्यक्ष सहित केन्द्र-राज्यों के शीर्षस्थ नेताओं के राज्य में दौरे, ताबड़तोड़ रैलियां, वर्चुअल रैलियां, कार्यकर्ताओं से संपर्क, संवाद,रोड शो, गली-गली जनसंपर्क यह साबित करता है कि मामला गंभीर है। हां भाजपा के लिए समाजवादी पार्टी-रालोद और ओमप्रकाश राजभर सहित कुछेक छोटे दलों और छोटी जातियों नेताओं के गठबंधन से पार पाना भी उतना आसान नहीं है जितना वह समझ रही है। हां यह तो सच है कि यदि भाजपा 2019 के लोकसभा में मिले वोट फीसदी को और 2017 मे मिले वोट प्रतिशत को अपने पक्ष में बरकरार रख पाने में कामयाब रहती है, उस दशा में वह दोबारा सत्ता में वापसी कर रिकार्ड कायम कर पायेगी। इसकी उम्मीद जरूर नजर आ रही है।

अब जरा मायावती नीतित बहुजन समाज पार्टी पर नजर डालें, यदि 2007 में विधान सभा चुनावों में बसपा का प्रदर्शन देखें तो उस समय उसने 30.4 फीसदी वोट पाकर राज्य में सरकार बनाने में कामयाबी पायी थी जबकि 2012 में समाजवादी पार्टी 29 फीसद वोट के साथ प्रदेश की सत्ता पर काबिज हुयी थी जबकि बसपा को 26 फीसद वोट से ही संतोष करना पडा़ था। हां यह जरूर था वह राज्य में प्रमुख विपक्षी दल का तमगा हासिल करने में जरूर कामयाब रही थी। जहा तक रालोद का सवाल है, बीते साल चौधरी अजित सिंह के निधन के बाद अब रालोद की कमान उनके बेटे जयंत चौधरी के हाथों में है। उन्होंने इस बार समाजवादी पार्टी से गठबंधन किया है। 2012 के चुनाव में रालोद को मात्र 9 सीट पर ही विजय मिली थी जबकि 2017 में वह एक सीट पर ही सिमट गयी। रालोद को जाटों की पार्टी कहा जाता है लेकिन पिछले लोकसभा चुनावों से भाजपा ने इस मिथक को कि जाट चौधरी की पार्टी को ही वोट देंगे, तोड़ दिया है। यहां तक कि परंपरागत बागपत और छपरौली जैसी सीटों को भी रालोद बचाने में नाकाम रहा है। जबकि उसका दो फीसद वोटों पर दबदबा रहा है। अब समाजवादी पार्टी की बात करें, उसे यादवों की पार्टी के रूप में जाना जाता है और बाबरी विध्वंस से पहले कारसेवकों पर तत्कालीन सपा सरकार द्वारा गोलीकांड के बाद से ही यह माना जाता रहा है कि मुसलमान सपा के अलावा कहीं जा ही नहीं सकता।

असलियत में कहा जाये तो राज्य में मुख्य संघर्ष भाजपा और सपा के बीच में ही है। यही दोनों सत्ता की दावेदारी में प्रमुख रूप से ताल ठोंक रहे हैं।बसपा तो जैसा मैंने पहले ही कहा कि अपनी मौजूदगी बरकरार रखने के लिए संघर्ष कर रही है।भाजपा के साथ मुख्यतः जहां अनुप्रिया पटेल नीतित अपना दल और निषाद पार्टी जैसे दल हैं, वही सपा के साथ भाजपा से आये कुछेक मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य, दारा सिंह चौहान आदि के अलावा मुख्यतः जयंत चौधरी का रालोद और ओमप्रकाश राजभर जैसे नेताओं का साथ है। बसपा का दलित खासकर प्रदेश के दलित वर्ग उसमें भी जाटव मतदाता पर एकछत्र कब्जा है। यह कहा जाता है कि जाटव मतदाता मायावती को छोड़कर और कहीं जा ही नहीं सकता। हां मुस्लिमों पर बसपा की पकड़ ढीली पडी़ है, इस सच्चाई को दरगुजर नहीं किया जा सकता। लेकिन जहां जहां बसपा के प्रभावी मुस्लिम उम्मीदवार हैं, वहां मुसलमान वोटों में सेंधमारी करने में बसपा कामयाब होगी, इसमें दो राय नहीं है। वह बात दीगर है कि सपा बसपा के लिए वोट कटवा या भाजपा की सहयोगी दल की संज्ञा दे लेकिन इस सच्चाई से इंकार नहीं किया जा सकता कि राज्य में बसपा का अपना एक निश्चित जनाधार है जो सत्ता समीकरणों को बनाने-बिगाड़ने में अहम भूमिका निबाहने में माहिर है। यह भी कि पिछले चुनावों में प्रदेश के ब्राह्मण मतदाताओं का रुझान बसपा के पक्ष में रहा है और इसका सत्ता हासिल करने में प्रमुख योगदान भी रहा है। लेकिन 2017 में ब्राह्मण मतदाता बसपा से छिटका और भाजपा से जुडा़। लेकिन इस बार वह किसकी ओर झुकेगा, यह अभी निश्चित तौर से नहीं कहा जा सकता। हां कांग्रेस को जरूर उसमें सेंधमारी करने में कामयाबी मिली है। साथ ही आधी आबादी यानी महिला मतदाताओं के रुझान को अपनी ओर करने में कुछ हदतक सफल रही है लेकिन वह भी राज्य में अपनी खोई जमीन ही लौटाने की जुगत में है। इसके अलावा वह चुनाव नतीजों को कुछ खास प्रभावित कर पायेगी, इसमें संदेह है। बहरहाल कांग्रेस नेत्री प्रियंका गांधी का परिश्रम कितना सफल होगा, यह तो समय ही बता पायेगा। वैसे विगत महीनों में राज्य में जहां तक रैलियों का सवाल है, भाजपा, सपा की रैलियों में उमडी़ भीड़ से कम प्रियंका गांधी की रैलियों में भी जन सैलाब कमतर नहीं दिखाई दिया। इन हालातों में कहा जा सकता है कि सत्ता की असल दावेदार तो भाजपा और सपा ही हैं, इसमें दो राय नहीं।

हां जहां तक राजनीतिक दलों द्वारा आरोपों-प्रत्यारोपों का सवाल है, इसका माहौल बेहद गरम है। कहीं भी कोई नहीं चूक रहा। यहां तक व्यक्तिगत आरोपों में भी कोई नेता कसर नहीं छोड़ रहा। भाजपा जहां राज्य में 2017 में सत्ता हासिल होने के बाद राज्य में सबका साथ, सबके विकास की भावना के साथ विकास करने, किसी की भी आस्था के साथ खिलवाड़ न होने देने, कुंभ व कांवड़ यात्रा शांति पूर्ण व सफलता पूर्वक सम्पन्न होने, सड़कों व राजमार्गों के निर्माण, निवेश में बढो़तरी के साथ, महिला सुरक्षा, चिकित्सा सुविधा, मेडीकल कालेजों की स्थापना,भ्रष्टाचार के खात्मे, नौजवानों को रोजगार मुहैय्या कराने, किसानों के खाते में सीधे राशि पहुंचाने, समाज के सभी वर्गों के गरीबों-वंचितों को मुफ्त राशन देने,राज्य की बेहाल कानून व्यवस्था में सुधार, गुंडागर्दी-अपराधों, अपराधियों-माफियाओं और जातिवाद के खात्मे, अपराधियों के सपा शासन में खुलेआम घूमने का आरोप लगाने के साथ अपराधियों से प्रदेश को मुक्ति दिलाने और चौबीसो घंटे बिजली देने का दावा करती है। भाजपा सपा-बसपा सरकारों पर अर्थ व्यवस्था चौपट किये जाने का आरोप भी लगाती है। भाजपा के इन आरोपों का किसी हद तक राज्य की जनता भी मौके-बेमौके समर्थन भी करती दिखती है।

जनता भाजपा के इन दावों के समर्थन में कहती भी है कि सच्चाई तो यह है कि सपा शासन में 2012 से 2017 के बीच एक ही परिवार, एक ही जाति का शासन था। राज्य में बिजली के दर्शन दुर्लभ थे। चौबीस घंटों में चार घंटे बिजली आ गयी तो समझ लो भगवान के दर्शन हो गये। सड़कों पर दो से तीन फीट तक के गड्ढे थे। वाहनों की बात दीगर है, पैदल चलना भी दूभर था। भ्रष्टाचार चरम पर था। वह चाहे पुलिस की भर्ती हो या कहीं और, यादवों के अलावा किसी और के लिए कोई जगह थी ही नहीं। भर्ती में चयनित लोगों की सूचियां, जिनमें एक ही वर्ग विशेष की बहुतायत होती थी, मंत्रीजी द्वारा अधिकारियों या पुलिस के उच्चाधिकारियों को दे दी जाती थी। नौकरी में दूसरे वर्गों के लिए कोई जगह थी ही नहीं। योग्यता और प्रतिभा के लिए कोई स्थान नहीं था। गुंडागर्दी चरम पर थी। जमीन-मकानों पर जबरिया कब्जों का आलम था। शाम छह बजे के बाद घरों से निकलना दूभर था। माफियाओं का राज था। किसान को राहत राशि तब ही मिल पाती थी जबकि बिचौलियों को उनका हिस्सा मिल जाता था। योगी राज में कम से कम शांति तो है, गुंडागर्दी तो नहीं है, चोरी-चकारी, गुंडे-मवालियों का तो भय नहीं है, कोरोना काल में ये सपा और दूसरी पार्टियों के लोग कहां थे। उस दौरान हमें राशन तो मिला है जो आज भी मिल रहा है। सबसे बडी़ बात भाजपा शासन में हमें शांति से जीने का मौका मिला है और हमें क्या चाहिए। जबकि सपा गठबंधन नेताओं का कहना है बीती बातों को बिसारिये, आगे की बात कीजिए। वह पुरानी पेंशन बहाली, नौजवानों को नौकरी, गन्ने का भुगतान 15 दिन में करने, भाईचारा बढा़ने का दावा कर रहे हैं और भाजपा पर सांप्रदायिक सद्भाव बिगाड़ने, बेरोजगारी बढा़ने, जातिवादी होने, भ्रष्टाचार बढा़ने, उनके किये कामों का उद्घाटन करने, विकास अवरुद्ध करने, निर्दोषों की हत्या करने जैसे आरोप लगा रहे हैं लेकिन कानून व्यवस्था, महिला सुरक्षा और अपराध खत्म करने के सवाल पर वह मौन साध जाते हैं। महिला सुरक्षा ,रोजगार और महिला सशक्तिकरण के दावों के साथ उपरोक्त आरोप कांग्रेस-बसपा भी भाजपा पर लगा रही है। जबकि बसपा पर अपने शासन में दलित उत्पीड़न के नाम पर निर्दोष लोगों पर फर्जी मुकदमे लगाने और विकास के नामपर केवल और केवल दलित नेताओं की मूर्तियां लगाने के आरोपों से भी इंकार नहीं किया जा सकता।

मौजूदा समय में तो भाजपा – सपा गठबंधन दोनों ही सत्ता मिलने का दावा कर रहे हैं। कुछ राजनीतिक विश्लेषक किसान आंदोलन के चलते जनता में मौजूदा सरकार के विरोधी रुख के बारे में जोर-शोर से दावे करते हुए समाजवादी गठबंधन की सरकार आने की घोषणा कर रहे हैं ।कयास तो यह लगाये जा रहे हैं कि हिजाब मामले का फायदा समाजवादी गठबंधन को मिलेगा लेकिन उसे एआईआई एम नेता मौलाना असदुद्दीन ओबैसी भी भुनाने की पुरजोर कोशिश कर रहे हैं।अब देखना यह है कि राज्य की जनता किसे सत्ता की बागडोर सौंपती है। चुनावों का परिणाम भले 10 मार्च को आयेगा लेकिन जनता वह बात दीगर है कि अभी हाल-फिलहाल वह मौन साधे है लेकिन अंदरखाने उसका रुख इस बात के अमूमन संकेत जरूर दे रहे हैं कि जनता मौजूदा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ में अपना और राज्य का भविष्य देख रही है। वह शांति और कानून का राज चाहती है। इसका भरोसा भाजपा नेता देते नहीं थकते। वह कहते हैं कि बीते पांच साल का योगी शासन इसका जीता-जागता सबूत है। समय-समय पर जनता ने चुनावों के बीच इसके संकेत भी दिए हैं। वह बात दीगर है कि दल विशेष से जुडे़ लोग भाजपा के शांति व्यवस्था से जुडे़ जनहितकारी कार्यों को सिरे से नकारें लेकिन राज्य की जनता का यह रुख भाजपा के लिए शुभ संकेत है कि राज्य में वह दोबारा सत्ता में आ रही है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं पर्यावरणविद हैं।)

TAGGED:UP Legislative Assembly Election: The road to power would have been easier for BJP - Gyanendra Rawat
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