ग्वालियर (अतुल्य लोकतंत्र ): वेलेंटाइन सप्ताह चल रहा है, बहुत ही तीव्र गति से समय के साथ साथ बदलाव हो रहा है। ऐसे में हम कहाँ खड़े हैं यह पता ही नहीं चलता है। हमारे भी बहुत से अरमान हैं, बहुतों को हमसे बहुत सी आशाएं व अपेक्षाएं हैं। उन सभी की आशाओं और अपेक्षाओं पर खरा उतरने के लिए क्या हमने भी कोई अपने जीवन का विजन बनाया है?
अक्सर हम लोग कई बातों को नकार देते हैं या अनदेखा कर लेते हैं, लेकिन उनके पीछे छिपे राज को हम समझ ही नहीं पाते हैं। धीरे धीरे हमारे पास समस्याओं का एक बहुत बड़ा पिटारा हो जाता है तथा हम लोग उसके बोझ तले दब जाते हैं। समस्या हम खुद ही पैदा करते हैं और उसके समाधान के लिए विकल्प भी हमारे पास ही है। लेकिन जब समस्याएं जटिल हो जाती है तो हमारे पास समाधान का कोई विकल्प नहीं रह पाता है। हम लोग लोक हँसी से बचने के लिए भी कभी कभी उक्त समस्याओं को अपने मित्रों या परिवार के सदस्यों के साथ साझा नहीं कर पाते हैं। अंत में हमारे भीतर झिझक,नकारात्मक सोच, मानसिक तनाव, एकाकीपन आदि घर कर जाती है।
हमारा मन और मष्तिष्क निष्क्रय होकर रह जाता है। धीरे धीरे हमारे अंदर की ऊर्जा नष्ट हो जाती है और हम लोग बुरी लत के शिकार हो जाते हैं। इसके बाद हमारी कर्मेन्द्रियों व ज्ञानेंद्रियों भी कमजोर हो जाती है तथा हमारी सोचने की शक्ति क्षीण हो जाती है। हमें न तो मित्र अच्छे लगते हैं और न ही परिवार के सदस्य।
सम्पूर्ण जीवन नीरस हो जाता है। हमारा खान पान,रहन सहन, आचार विचार, परिवेश,हँसी-ठिठोली, मनोरंजन आदि भी हमसे दूरियों बना लेता है। जरा सोचो। ऐसा क्यों होता हैं? जिससे हमारी खुशियों गम में तब्दील हो जाती है।
जहाँ तक मेरा अनुभव है कि हमने अपनी जिंदगी को ही नहीं पहचाना हैं। हमने अपने आपको भी नहीं पहचाना है और न ही हमने अपने स्वविवेक को पहचाना है। धैर्य बहुत बड़ी चीज है और धीरज धारण करना मनुष्य का सबसे बड़ा आभूषण हैं। सत्संग अर्थात अच्छे लोगों के साथ उठना-बैठना,महा पुरुषों की जीवनियों को पढ़ना,अपने आस पास के वातावरण को समझना तथा प्रकृति के साथ प्रकृतिमय बन जाना ही जिंदगी है।
क्रोध पागलपन की निशानी है,क्षणिक दुःख में घबरा जाना भी हमारी सबसे बड़ी कमजोरी है। आज के दौर में प्रतिस्पर्धा भी हमारे सुख में खलल पैदा करती है।आपके नाम से आपकी पृष्ठभूमि,क्षेत्र,पिछली पीढ़ी की सामाजिक ,आर्थिक, सांस्कृतिक, शैक्षिक स्थिति ,अहंकार,वर्तमान प्रेरणा, विचार,भविष्य की सोच,अंधविश्वास, जातिवाद,धार्मिक झुकाव, भाषा की जानकारी ,उद्देश्य, बदलाव के प्रति समर्पण,आपकी अपनी नाम-उपनाम के शब्दों के अर्थ की जानकारी और उनके प्रति समर्पण का ज्ञान परिलक्षित होते हैं ।आपका नाम ही आधी क्रान्ति या आधा समर्पण संदेश है। अतः मस्त रहें,बिंदास होकर जिएं,बेतहाशा अपनी जिंदगी से प्यार करें। एक लक्ष्य निश्चित करें, और आगे बढे।
“भारत का संविधान” अनुच्छेद-51क.* भारत के प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य होगा कि वह– *(क) संविधान का पालन करे और उसके आदर्शों, संस्थाओं, राष्ट्र ध्वज और राष्ट्रगान का आदर करे।
उक्त विचार वरिष्ठ समाजसेवी श्रीप्रकाश सिंह निमराजे( अध्यक्ष, गोपाल किरन समाजसेवी संस्था) ने कार्यालय पर पर सम्मान के अवसर पर कही। हमको भगवान बुद्ध के मूल मंत्र अप दीपो भव पर के विचार पर कार्य करें।