इसमें किंचित मात्र भी संदेह नहीं है और यह कटु सत्य भी है कि इतिहास स्वयं को दोहराता है। आज ग्वालियर के पूर्व महाराजा वरिष्ठ कांग्रेस नेता श्री मंत ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस से इस्तीफा देकर यह प्रमाणित कर दिया है। असलियत में श्री सिंधिया ने 70 के दशक में अपनी दादी स्वर्गीय राजमाता विजयाराजे सिंधिया के पदचिन्हों पर चलते हुए उनका अनुसरण कर भारतीय जनता पार्टी का दामन थामकर कांग्रेस को अलविदा कहकर कोई अनूठा काम नहीं किया है।
यह इस परिवार का पुराना इतिहास है। उनकी दादी ने भी 70 के दशक में कांग्रेस को छोड़कर जनसंघ (वर्तमान में भारतीय जनता पार्टी) का दामन थामा था। जानकारों का कहना है कि इस परिवार पर इसके पूर्व इतिहास को जानते हुए कांग्रेस को भरोसा करना ही नहीं चाहिए था। इस परिवार ने न तो मराठों का साथ दिया और न ही 1857 के स्वातंत्रय आंदोलन में महारानी लक्ष्मीबाई का साथ दिया। उसका दुष्परिणाम देश में बरतानिया हुकूमत के रूप में सामने आया।
राज्य में इसकी संभावना तो मध्य प्रदेश में विधान सभा चुनाव के बाद ही बलवती हो गयी थी जब कमल नाथ को राज्य का मुख्य मंत्री बनाया गया था। कमलनाथ का मुख्यमंत्री पद पर आसीन हो जाना सिंधिया को स्वीकार्य नहीं था। उस समय से ही वह जोड़तोड़ में लगे हुए थे। उनके सपनों को हवा दी संस्कृति, आदर्श, नैतिकता, चरित्र, ईमानदारी की अलम्बरदार भारतीय जनता पार्टी ने जिसके सर्वेसर्वा कहें या महानायक प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी हैं। वह बात दीगर है कि इस पूरे घटनाक्रम को राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री शिविराज सिंह कांग्रेस का अंदरूनी मामला करार देते हैं।
असलियत में यह प्रकरण भारतीय जनता पार्टी के दोहरे चरित्र को उजागर करने के लिए काफी है। वैसे गोवा, मणिपुर और कर्नाटक इसके पूर्ववर्ती ज्वलंत उदाहरण हैं। इससे यह स्पष्ट है कि राजनीति का कोई चरित्र नहीं होता और भारतीय जनता पार्टी सत्ता के लिए कुछ भी करने में कोई संकोच करने में विश्वास नहीं रखती। बीते साल इसके जीते जागते सबूत हैं। वादे करने में भी उसका कोई सानी नहीं है। देश की जनता अब यह असलियत बखूबी समझ चुकी है। बहरहाल भाजपा के करतब से अब मध्य प्रदेश में कमल खिलेगा, इस सच्चाई को नकार नहीं जा सकता।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)