• अतुल्य लोकतंत्र के लिए पर्यावरणविद् प्रशांत सिन्हा की कलम से …
विज्ञान की निरंतर भागदौड़ तथा मानव का भौतिकवाद और असंतुष्ट लोभ , प्राकृतिक संकलनों – संसाधनों की तीव्रता से नष्ट करने के कारण मौसम में जो बदलाव हुआ है वह बेहद चिन्ता का विषय है। इस साल फरवरी मार्च में ही कुछ राज्यों में भीषण गर्मी पड़ी। गोवा, महाराष्ट्र के कोंकण भागों में लू जैसी स्थिति देखी गईं थी। मई – जून में बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश को छोड़ कर प्रायः सभी राज्यों में बारिश होती रहीं। मई – जून के माह में जब लू के थपेड़े चेहरे को लाल करने लगता है तब बर्फीली हवाएं चल रही थी और पंखे की जरूरत भी महसूस नहीं हुई। मौसम के दिनोदिन आ रहे बदलाव को सामान्य तो नही कह सकते। दरअसल यह एक भीषण समस्या है जिसे झुठलाया नहीं सकता। समूची दुनिया इसके दुष्प्रभाव से अछूती नहीं है। इस वर्ष युरोप के आठ देशों में औसतन पिछले कई वर्षो के मुकाबले लगभग 15 डिग्री सेल्सियस ज्यादा तापमान रहा। एशियाई देशों की बात करें तो बांग्लादेश और थाईलैंड में तापमान ने 60 साल का रिकॉर्ड तोड़ दिया। चीन, जापान, म्यांमार, और वियतनाम में कमोबेश यही स्थिति रही। मौसम विज्ञानी भी अचंभित हैं। वैसे हैरानी की बात आजकल नही रही क्योंकि न तो गर्मियां गर्मियों की तरह रही और न तो सर्दी सर्दियों की तरह। दस साल पहले के मौसम के तुलना में आजकल का मौसम पुरी तरह से परिवर्तित हो चूका है।
मार्च के महीने में भारत के कई राज्यों में भारी बारिश देखी गईं। वर्षा से तापमान घटता है, लेकिन फरवरी महीने में पिछले वर्ष की तुलना में कम पानी गिरने से तापमान बढ़ा। देश के कई हिस्से फसलों के लिए जनवरी – फरवरी में बारिश के लिए तरसते रहे। लेकिन अप्रेल – मई में जब खेतों में गेहूं पक चुकी थी तब बारिश ने ऐसा कहर ढाया कि खेतों में ही फसल बिछ गई। यह खतरे की घंटी है। बदलते मौसम की मार से प्रकृति के साथ साथ हमारे जीवन के कोई पहलू अछूता नहीं बचा है। हमारा रहन सहन, भोजन, स्वास्थ्य और कृषि इस रुप से प्रभावित हुई है। कृषि उत्पादन में आ रही कमी, सुखा और भूमि के बंजर होने की गति में हो रही बढ़ोतरी इसका जीता जागता सबूत है। वैज्ञानिक शोध और अध्ययन ने इस तथ्य को प्रमाणित भी कर दिया है। मौसम के बदलाव के कारण मनुष्य संक्रमण की चपेट में है। नतीजन शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली पर दुष्प्रभाव पड़ रहा है। बाढ़, चक्रवात, तूफान आदि आपदाओं में बढ़ोतरी उसी का नतीजा है।
मौसम में तेजी से हो रहे बदलाव का बड़ा कारण है ग्रीन हाउस गैस का उत्सर्जन। ग्रीन हाउस गैस का उत्सर्जन तेजी से हो रहा है जो मौसम पर प्रतिकुल प्रभाव डाल रहा है। इसके साथ ही एयरोसॉल सल्फेट की मात्रा भी बढ़ती जा रही है। इसकी वजह से जमीन और जल दोनों का तापमान बढ़ रहा है। अल नीनो के कारण भी तापमान पर प्रभाव पड़ा है। जमीन की कटाई की वजह से जमीन से वाष्पीकरण में कमी आई है। भारतीय पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय की जून 2020 में जलवायु परिर्वतन पर आई रिर्पोट में कहा गया है 1986 से 2015 के बीच गर्म दिनों का तापमान 0.63 डिग्री सेल्सियस और सर्द रातों का तापमान 0.4 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ा है। इसमें यह भी अनुमान लगाया गया है कि अगर यही रुझान आगे भी रहा तो गर्म दिनों का तापमान 4.7 डिग्री और सर्द रातों का तापमान 5.3 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ सकता है। इसका अर्थ यह हुआ कि गर्म दिनों की संख्या 5.5 फीसदी तक और गर्म रातों की संख्या 70 फीसदी तक बढ़ना तय है जो बेहद चिंताजनक है। यह सही है कि प्रकृति को प्रभावित करने वाले कारकों व कारणों के पीछे इंसानी गतिविधियां भी कम ज़िम्मेदार नहीं। अब समय की मांग है कि पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाली गतिविधियों पर तत्काल लगाम लगे जिससे औसत तापमान बढ़ोतरी पर अंकुश लगे।