इस साल 13 जून के बाद से अब तक विभिन्न प्राकृतिक आपदाओं में 200 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है। 27-28 जुलाई को लाहौल-स्पीति में भारी बारिश से सात लोगों की, केलांग और उदयपुर में बादल फटने से 12 लोगों की, 25 जुलाई को किन्नौर में पत्थरों के गिरने से नौ लोगों की मौत हो गई थी।
इस साल जिस तरह एक के बाद एक पहाड़ दरक रहे हैं उससे स्थानीय निवासी और बाहर से आये सैलानी, सब दहशत में हैं। जून में जिस तरह सैलानियों का हुजूम हिमाचल में आ गया था वह अब नदारद हो चुका है। अब लोग हिमाचल आने से डर रहे हैं, ख़ास कर ज्यादा ऊँचाई वाले इलाकों में जाने वालों की संख्या में खासी कमी आई है। किन्नौर में पहाड़ों के दरकने की घटनाओं को देख अब लोग रास्तों पर चलने से डर रहे हैं।
किन्नौर जिले में पहाड़ों के दरकने की असंख्य घटनाएं हो चुकी हैं
किन्नौर जिले में बीते कुछ दशकों में ही पहाड़ों के दरकने की असंख्य घटनाएं हो चुकी है। यहां के एक बड़े वर्ग का मत है कि किन्नौर जिले में बीते दो-तीन दशकों में ही कई भूमिगत जल विद्युत परियोजनाएं सहित कई सड़कों का भी निर्माण हुआ है। इन सभी कार्यों में अत्यधिक विस्फोटकों के प्रयोग होने से यहां की पहाड़ियां जर्जर हो चुकी है। इन विस्फोटों के कारण पहाड़ों में आई दरारों में बारिश व बर्फ का पानी रिसाव होने से इस तरह की घटनाओं का रूप ले रही हैं जो किन्नौर के लिए बेहद खतरनाक होता जा रहा है। न्यूगलसेरी के पास भूस्खलन की जो ताजी घटना हुई है, ठीक उसके नीचे से करीब तीन दशक पूर्व भूमिगत जल विद्युत परियोजना का भी निर्माण हुआ है।