श्रीलंका की संसद के स्पीकर महिंदा यापा अभयवर्दना ने भारत के प्रति आभार जताया है। उन्होंने कहा- भारत एक भरोसेमंद दोस्त है और उसने पिछले साल आर्थिक संकट के दौरान हमारी रक्षा की। अगर भारत न होता तो शायद देश में एक बार फिर से खून-खराबे का माहौल बन जाता। 2 दिन पहले इंडियन ट्रैवल कांग्रेस के डेलिगेशन के लिए हुए गाला डिनर के दौरान श्रीलंकन स्पीकर ने ये बात कही।
अभयवर्दना ने कहा- श्रीलंका और भारत के बीच गहरी दोस्ती है। भारत हमेशा हमारा सबसे भरोसेमंद साथी रहा है। दोनों देशों में कल्चर, नेशनल, सोशल और पॉलिसी के लिहाज से काफी समानता है। मैंने सुना है कि भारत हमारे लोन को 12 सालों के लिए बढ़ाने (रीस्ट्रक्चर) को तैयार है। हमें कभी इसकी उम्मीद नहीं थी और आज तक किसी भी देश ने हमारी इतनी मदद नहीं की।
इसके बाद मीडिया से बातचीत करते हुए संसद स्पीकर ने कहा- श्रीलंका में मौजूद भारतीय एम्बेसडर गोपाल बगलय हमारे खास दोस्त हैं। हम उनसे बेहद प्यार करते हैं और उनका सम्मान करते हैं। भारत हमेशा हमारी मदद के लिए आगे आया है। पिछले साल इकोनॉमिक क्राइसिस के वक्त भारत ने हमारी आर्थिक मदद की, जिससे हमें 6 महीने तक देश चलाने में आसानी हुई। हम इसके लिए भारत और PM मोदी के आभारी हैं।
राष्ट्रपति बोले- श्रीलंका का इस्तेमाल भारत के खिलाफ नहीं होगा
कुछ दिन पहले श्रीलंका के राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे ने कहा था कि उनके देश का इस्तेमाल कभी भारत के खिलाफ नहीं किया जा सकेगा। ब्रिटेन और फ्रांस के दौरे पर रवाना होने से पहले रानिल ने कहा था- इस बात में किसी को कोई शक नहीं होना चाहिए कि हम चीन से कभी मिलिट्री एग्रीमेंट नहीं करेंगे। चीन और श्रीलंका के रिश्ते मजबूत हैं, लेकिन हम ये भी साफ कर देना चाहते हैं कि हमारे देश में चीन का कोई मिलिट्री बेस नहीं हैं और न होगा। हम एक न्यूट्रल देश हैं।
पिछले साल की थी 4 बिलियन डॉलर की मदद
पिछले साल श्रीलंका ने अपने इतिहास के सबसे बड़े आर्थिक संकट का सामना किया था। तब भारत ने श्रीलंका की 4 बिलियन डॉलर से ज्यादा की आर्थिक मदद की थी। श्रीलंका के विदेश मंत्री अली साबरी ने इस मदद के लिए भारत को धन्यवाद दिया था। साबरी ने कहा था कि भारत की मदद से ही श्रीलंका थोड़ा-बहुत वित्तीय संतुलन हासिल कर पाया था। टैक्स में कटौती का फैसला भारी पड़ा2019 में तत्कालीन राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने टैक्स में कटौती का लोकलुभावन दांव खेला, लेकिन इससे श्रीलंका की अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचा। एक अनुमान के मुताबिक, इससे श्रीलंका की टैक्स से कमाई में 30% तक कमी आई, यानी सरकारी खजाना खाली होने लगा। 1990 में श्रीलंका की GDP में टैक्स से कमाई का हिस्सा 20% था, जो 2020 में घटकर महज 10% रह गया। टैक्स में कटौती के राजपक्षे के फैसले से 2019 के मुकाबले 2020 में टैक्स कलेक्शन में भारी गिरावट आई।