फरीदाबाद (अतुल्य लोकतंत्र ): महाविद्यालय बल्लभगढ़ में हिंदी विभाग और फोर्थ वाॅल प्रोडक्शंस के संयुक्त तत्वावधान में हरियाणा उर्दू अकादमी के सहयोग से एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस सेमिनार का उद्देश्य युवा पीढ़ी में नाटकों के प्रति जागरूकता एवं उनकी प्रासंगिकता को बताने के साथ ही उर्दू भाषा के महत्व के बारे में अवगत कराना था। इस कार्यक्रम की अध्यक्ष कमल टण्डन ने उर्दू भाषा की नज़ाकत और शेक्सपियर के नाटकों का भी ज़िक्र किया। इस कार्यक्रम की संयोजिका डाॅ0 सुषमा रानी एवं मधु सिंगला थी।
इस सेमिनार में विशिष्ट वक्ता ज्योति संग ने कहा कि नाटक परम्परा अत्यंत प्राचीन है। त्रासदी के समय पर नाटकों द्वारा ही भाव अभिव्यक्ति होती थी। जसवंत सिंह द्वारा पहली बार राम कथा मे उर्दू भाषा प्रयुक्त हुई, जिनके नाम पर अकादमी द्वारा रंगमंच के क्षेत्र में पुरस्कार भी दिया जाता है। उन्होंने नाटकों की प्रासंगिकता बताते हुए हिंदी के साथ साथ उर्दू भाषा के योगदान पर विस्तृत चर्चा की। वहीं कार्यक्रम के मुख्य वक्ता श्री आनंद सिंह भाटी ने कहा कि रंगमंच क्रांति का पर्याय है। नाटकों का इतिहास बताते हुए अभिनय के प्रकारों पर भी उन्होंने चर्चा की। उन्होंने पारसी रंगमंच का जिक्र करते हुए उर्दू और हिंदी के सम्मिश्रित संवाद भी सुनाये।
कार्यक्रम के तृतीय वक्ता डॉ० अंकुश शर्मा ने हिंदी और उर्दू में बहन-बहन का नाता बताते हुए मुन्नवर राणा के एक शेर से शुरूआत करते हुए कहा कि सगी बहनों का जो रिश्ता है उर्दू और हिंदी में, कहीं दुनिया की दो जिंदा जबानों मे नही मिलता। उन्होंने भारतेंदु युग से लेकर आधुनिक युग तक के नाटकों में उर्दू के महत्व को बताया। हिंदी और उर्दू मिश्रित कविताओं एवं सम्वादों के माध्यम से विद्यार्थियों को रंगमंच की सार्थकता को बताया।
कार्यक्रम का समापन डॉ० रेनू माहेश्वरी के धन्यवाद ज्ञापन से हुआ, जिसमें स्नातक एवं स्नातकोत्तर के लगभग 125 विद्यार्थियों ने सक्रिय भागीदारी की और प्रश्नों के माध्यम से विचार-विमर्श किया। हरियाणा उर्दू अकादमी के सहयोग से फोर्थ वाॅल प्रोडक्शंस और माविद्यालय के हिंदी विभाग के सार्थक प्रयासों से यह एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी सफल एवं सार्थक साबित हुई।