
यूं तो पत्रकार वर्ग को बुद्धिजीवी वर्ग में आंका जाता है और यह सत्य भी है। लेकिन गत कुछ वर्षों से यूं कहें लगभग एक दशक से पत्रकार जगत अपनी विश्वस्नीयता खोता जा रहा है और बड़े दुःख की बात है कि यह विश्वस्नीयता का ग्राफ तेजी से निचे की ओर गिरता जा रहा है।
हालांकि मुझे आज इस लेख को लिखते हुए बड़ा अजीब सा भी महसूस हो रहा है क्योंकि मैं भी इसी पेशे से जुड़ा हुआ हूं। लेकिन यदि हमारे अंदर सचमुच का पत्रकार जिंदा है तो हमें अपने विचार खुल कर समाज के सामने रखने चाहिए क्योंकि हम भी समाज का ही हिस्सा है। ज्ञात रहे हमारी आजादी की लड़ाई में हमारे देश के कलमकारों ने अतुल्य योगदान दिया है, और अन्य बड़े योगदानों में भी पत्रकार पीछे नहीं रहे, ऐसे पत्रकारों पर मुझे अभिमान है।
आज की स्थिति : आज देश के पत्रकारों के लिए देश के आम आदमी द्वारा और नेताओं द्वारा विभिन्न अपमानजनक शब्दों का प्रयोग जैसे दलाल मीडिया, गोदी मीडिया, ब्लैकमेलर, दरबारी आदि अंदर के पत्रकार को बहुत पीड़ा देता है। यह भी सत्य है कि सब एक से नहीं होते, मै बड़े स्पष्ट तौर पर यह भी कहना चाहता हूं कि जो पत्रकार ईमानदारी से, कर्तव्य परायणता से अपने काम को कर रहे हैं उन्हे इन बातों से कोई फर्क नहीं पड़ता लेकिन जब पेशा बदनामी ओढ़ ले तो वह कुछ परेशान अवश्य करता है।
क्यों है यह स्थिति : बड़ी चिंता की बात है कि इस पेशे में ऐसे ऐसे महानुभाव प्रवेश कर रहे हैं जिनका पत्रकारिता से दूर दूर का नाता नहीं, और उससे भी बड़े दुःख की बात यह कि बहुत से बड़े मीडिया घरानों ने ऐसे लोगों को जिलों में अपना सर्वेसर्वा बना रखा है जिनको पत्रकारिता की समझ ही नहीं।
विधायक की नसीहत विडियो : अभी हाल ही में हरियाणा के एक निर्दलीय विधायक द्वारा पत्रकारों के खिलाफ एक विडियो वायरल की थी, जिसमें उक्त विधायक कुछ अनजान पत्रकार साथियों पर तरह तरह के लांछन लगा रहे थे, हालांकि इस वीडियो पर किसी पत्रकार संगठन या किसी वरिष्ठ पत्रकार द्वारा प्रतिक्रिया नहीं दी गई। विधायक अपनी बात में कितना सच बोल रहा है यह नहीं कहा जा सकता है, लेकिन पत्रकारों को इस पर जरूर प्रतिक्रिया देनी चाहिए थी, क्योंकि यदि पत्रकार अपनी जगह ठीक हैं तो उन्हें सामने आकर विधायक की विडियो पर आपत्ति दर्ज करनी चाहिए थी, ताकि भविष्य में कोई नेता विधायक इतनी हिम्मत न कर सके। यदि विधायक ठीक कह रहा है तो उन पत्रकारों पर मीडिया को संज्ञान लेना चाहिए। हम सब पत्रकार साथियों को इस पर विचार करना चाहिए।
पत्रकार संगठनों के सरकार को पत्र : साथियों इस कोरोना महामारी के चलते जहां पूरा देश परेशान है, राष्ट्र की अर्थव्यवस्था भी हिली हुई है, आम जनता परेशान है, कुछ बीमारी के कारण, कुछ भविष्य किस ओर जाएगा इस कारण। ऐसे में पत्रकारों के कई संगठनों ने प्रधानमंत्री, या प्रदेश के मुख्यमंत्रियों को चिट्ठी लिखी है, जिसमें इस महामारी के चलते पत्रकार साथियों को राहत पैकेज की मांग की गई है, लेकिन सरकार ने किसी संगठन की बात पर कोई तव्वजो नहीं दी। मुझे बड़ा अजीब लगता है हम पत्रकारों के पास लोग अपनी समस्याएं लेकर आते हैं, और हम लोग उनके समाधान की भी भरपूर प्रयास करते हैं सफल भी हो जाते हैं। लेकिन पत्रकार जगत के भाइयों को संकट आता है तो वे खुद क्यों निशक्त हो जाते हैं। संगठन अपनी अपनी बात रखते हैं लेकिन कोई सुनवाई नहीं हो पाती।
मुझे इस बात का सिर्फ एक कारण लगता है और वह है, पत्रकारों में एकता की भारी कमी। यह सोचने का विषय है, जिस दिन हम सब एक हो जाएंगे शायद भारत की कोई यूनियन या संगठन इतनी शक्तिशाली नहीं होगी, जितनी पत्रकार साथियों की यूनियन। आज हम सिर्फ इसीलिए निशक्त हैं क्योंकि हम एक नहीं हैं, मेरी बात को अन्यथा न लें, हजारों यूनियन रूपी दुकानें सजी हुई हैं, जिनकी कोई सुनवाई कहीं नहीं। यही कैंसर पत्रकारों को कमजोर कर रहा है, नेता कभी नहीं चाहेंगे हम एक हों। आज का मेरा यह लेख सिर्फ पत्रकार साथियों को समर्पित है। मेरा अंत में सभी साथियों से अनुरोध है कि हम सब सजग रहें, सशक्त रहें, संगठित रहें।
(लेखक एक वरिष्ठ पत्रकार एवं सामाजिक चिंतक हैं, ये लेखक के निजी विचार हैं)