सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को असम में अवैध प्रवासियों से जुड़ी सिटीजनशिप एक्ट की धारा 6A की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली 17 याचिकाओं पर फैसला सुरक्षित रख लिया।
इससे पहले केंद्र सरकार ने कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर बताया कि विदेशी नागरिक भारत में चोरी-छिपे घुसते हैं। इसलिए अवैध प्रवासियों का सटीक डेटा कलेक्ट कर पाना संभव नहीं है।
केंद्र ने कहा- अब तक 17,861 विदेशियों को भारतीय नागरिकता दी गई है। 2017-2022 के बीच 14,346 विदेशियों को उनके देश वापस भेजा गया। फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल ऑर्डर 1964 के तहत 1966-1971 के बीच 32,381 लोगों की पहचान विदेशियों के रूप में की गई है।
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने 7 दिसंबर को केंद्र सरकार से 1 जनवरी 1966 से 25 मार्च 1971 तक असम में बांग्लादेशी शरणार्थियों को दी गई नागरिकता का डेटा मांगा था।
सुप्रीम कोर्ट में 5 जजों की बेंच ने की सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट में पांच जजों की बेंच ने फैसला सुरक्षित रखने से पहले चार दिनों तक अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता, सीनियर एडवोकेट श्याम दीवान और कपिल सिब्बल की दलीलें सुनीं।
इस बेंच में चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के अलावा जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस एमएम सुंदरेश, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा शामिल थे।
क्या कहती है सिटीजनशिप एक्ट की धारा 6A
असम समझौते के तहत भारत आने वाले लोगों की नागरिकता से निपटने के लिए एक विशेष प्रावधान के रूप में नागरिकता अधिनियम में धारा 6ए जोड़ी गई थी। जिसमें कहा गया है कि जो लोग 1985 में बांग्लादेश समेत क्षेत्रों से 1 जनवरी 1966 या उसके बाद लेकिन 25 मार्च 1971 से पहले असम आए हैं और तब से वहां रह रहे हैं, उन्हें भारतीय नागरिकता प्राप्त करने के लिए धारा 18 के तहत अपना रजिस्ट्रेशन कराना होगा।